Ramaa Ka Antadwandh (रमा का अंतर्द्वंद्ध )


रमा जैसे ही घर के लिए निकलने ही लगी थी उसका फ़ोन बज उठा। दूसरी तरफ उसकी मां थी, वह रोते रोते कह रहीं थी –बेटा कहां हो, जल्दी से घर आ जाओ, तुम्हारे पापा को पता नहीं क्या हो गया है। उन्हें छाती में बहुत तेज़ दर्द हो रहा है और अचेत से हो गए हैं, बदन भी बिलकुल ठंडा पड गया है। बस तू जल्दी से आजा, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा, शायद अचानक दिल का दौरा पड़ा है। मैं अकेली हूं क्या करूं ? रमा के तो पैरों तले से मानो ज़मीन ही निकल गयी ।
कई दिनों से पापा से मिलने का कार्यक्रम बना रही थी किन्तु व्यस्तता के चलते हर रविवार निकल जाता था घर के काम काज निपटाते।
रमा एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में सीनियर पद पर कार्यरत थी। रमा अपने मां बाप की इकलौती बेटी थी और इसी शहर में ही रहती थी, फिर भी कई बार महीने बीत जाते थे अपने मां- बाप से मिले हुए। फोन पर तो दिन में कई बार बात हो जाती थी । उसके अपने दो बच्चे थे और घर में सास ससुर थे, भरा पूरा परिवार था ।

रविवार के दिन उसे सारे सप्ताह के कार्य निपटने होते थे, बच्चों की ज़रूरतों को पूरा करना, घर का रख रखाव करते दिन कहां उड़ जाता था, पता ही नहीं लगता था। अगर कोई मेहमान आ गए तो बस फिर तो सब काम भी रह जाते थे। आज मां से पिताजी की अचानक तबियत ख़राब हो जाने की खबर से वह टूट सी रही थी।
उसने तुरंत एम्बुलेंस के लिए अस्पताल में फोन किया और टैक्सी लेकर अपने मायके की तरफ निकल गयी। रास्ते में वह सोच रही थी हम अपनी व्यस्तता के कारण कितने उलझ के रह जाते हैं अपने कामों में और अपनों का सही तरह से ध्यान भी नहीं रख पाते। एक अंतर्द्वंद ने, जिसमें हर कामकाजी महिला आज घिरी रहती है- रमा को भी घेर लिया था। सब को खुश रखने की कोशिश में आज की कामकाजी महिला एक मशीन बन कर रह गयी है उसे खुद भी नहीं पता ।

वह मन ही मन प्रार्थना कर रही थी कि भगवान करे पापा को समय पर मेडिकल सहायता मिल जाये और सब कुछ ठीक हो जाये। उसने फोन पर ही डॉक्टर और अपने पति विष्णु से भी बात कर ली थी। जैसे ही वह घर पहुंची एम्बुलेंस भी एक डॉक्टर के साथ वहां पहुंच चुकी थी। तुरंत पिताजी को एम्बुलेंस में शिफ्ट किया और अस्पताल के लिए वे सब रवाना हो गए। रमा भी मां के साथ एम्बुलेंस में ही बैठ गयी। आज अगर पापा को कुछ हो जाता तो मैं क्या करती …यही विचार रमा के मन में बार बार उठ रहा था। तभी उसके मन में एक विचार आया कि क्यों एक लड़की अपने माता-पिता का ख्याल साथ रहकर नहीं कर सकती। शायद इसीलिए लोग नहीं चाहते कि लड़की पैदा हो। इसीलिए कहा जाता है कि लड़की तो पराया धन होती है। लेकिन आज जब लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी हो गई हैं तो यह भेदभाव क्यों … रमा दूर कहीं खो गयी थी।
स्कूल के दिनों से ही पापा ने उसे व्यायाम की आदत डाल दी थी । वे दोनों सुबह सुबह पार्क में इकट्ठे जाते थे और नियमित दौड़ लगाते थे। खानपान में भी पापा बहुत सादा भोजन ही लेते थे। सिगरेट को उन्होंने कभी हाथ नहीं लगाया था । इसके बावजूद दिल का दौरा, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।
एम्बुलेंस हॉस्पिटल के आपातकालीन कक्ष के सामने रुक गयी। वहां उसके पति पहले से ही पहुंच चुके थे। तुरंत पापा को एम्बुलेंस से अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया। उनके डॉक्टर पहले से ही उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। तुरंत उपचार शुरू कर दिया गया। उन्हें वास्तव में दिल का दौरा ही पड़ा था लेकिन राहत की बात यह थी कि यह दौरा हल्का था। वह अपनी मां और पति के साथ प्रतीक्षालय में जा कर बैठ गयी और भगवान् से पापा के स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करने लगी। ईश्वर की कृपा से उसके पापा ठीक हो गए और कुछ ही दिनों में उन्हें वापस जाने के लिए कह दिया गया। जिस दिन उन्हें वापस जाना था, रमा के मन में कुछ ऐसा था, जिसे वह चाहते हुए भी कह नहीं पा रही थी। इसी वजह से वह कुछ अनमनी सी थी। पापा को वापस ले जाने के लिए उसके पति अपने माता-पिता को साथ लेकर अस्पताल पहुंचे तो रमा को आश्चर्य हुआ क्योंकि पहले तो ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं था। लेकिन जब टैक्सीवाले को उन्होंने अपने घर का पता बताया तो रमा की आंखें भर आईं और जब उसके सास-ससुर ने भी आंखों ही आंखों में अपनी सहमति जता दी तो आंखों से खुशी के आंसू बह निकले।

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