A peaceful sleep… :(सुकून की नींद)
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A Peaceful Sleep....... :(सुकून की नींद) रात के ग्यारह बजे रहे थे रवि अभी तक ऑफिस से नहीं आया था।तिवारी जी हर आहट पर बाहर निकल आते।उन्होंने दरवाजे को धीरे से धकेला सड़क पर सन्नाटा पसरा हुआ था। अब तो उनके साथ-साथ उस दरवाजे को भी आदत पड़ गई थी रवि का इंतजार करने की। जैसे-जैसे घड़ी की सुई आगे बढ़ती उनकी घबराहट बढ़ती जाती।तभी एक गाड़ी अंधेरे को चीरते हुए तेज आवाज के साथ गली से गुजरी तिवारी जी की छड़ी उस आवाज को सुन ठिठक गये । “भौं-भौं!” गली कुत्तों की आवाज़ से भर गई ।कुत्तों ने उस गाड़ी का दूर तक पीछा किया और गाड़ी को गली के मोड़ तक छोड़कर वापस आ गए। इन कुत्तों को भी न जाने आती-जाती कारों से क्या दुश्मनी होती है। सम्भवतः कार के आवागमन से उनकी नींद में ख़लल पड़ता था या फिर उनकी तेज़ रफ़्तार उनके जीवन की जटिलताओं को और उभार देती थी और वह मन की तसल्ली के लिए दौड़ा कर अपनी नजरों से दूर करने का प्रयास करते पर कहते हैं आँखें मूंद भर लेने से समस्या हल नहीं हो जाती हैं। तिवारीजी ने गहरी सांस ली।न जाने कितनी ही रातें कितने ही पल उन्होंने रवि के इंतज़ार करने में इस तरह से बिताई...